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कविता

मुक्ति

गुलाब सिंह


अब कोई अनुताप
करते किसलिए
प्रेम की रसधार
पीकर ही जिए।

आवरण में
आत्मा की शक्ति है
मरण के इस पार
ही तो मुक्ति है
रोशनी के हेतु हरदम
जले आँखों के दिए।

रास्ते का छोर पहला
यात्रा की ओर है
और मंजिल रास्ते का
ही तो अगला छोर है
गति सुगति के साथ
दूरी तय किए।

गुनगुनाते दूरवर्ती
लक्ष्य आलोकित करें
तिमिरधर्मा रिक्तियों की
निशा निर्वासित करें
गीत शाश्वत ही रहेंगे
जन्म से अमृत पिए।


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